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अतुल सुभाष सुसाइड मामला: न्याय व्यवस्था और पारिवारिक विवाद के बीच एक त्रासदी

11 December 2024 by
Mohindra Chronicle
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Chronicle news/Naveen

जौनपुर/बेंगलुरु – अतुल सुभाष की आत्महत्या का मामला पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। जौनपुर से लेकर बेंगलुरु तक इस घटना ने न्याय व्यवस्था, पारिवारिक विवादों, और मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को उजागर किया है।  

सुसाइड नोट के खुलासे

अतुल सुभाष ने अपने सुसाइड नोट में कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। उन्होंने अपनी पत्नी निकिता पर झूठे आरोपों में फंसाने, आत्महत्या के लिए उकसाने और आर्थिक रूप से शोषण करने का आरोप लगाया है। साथ ही, उन्होंने न्यायालय की कार्यवाही में भ्रष्टाचार और लगातार तारीखों से उत्पन्न तनाव का भी उल्लेख किया। 

पत्नी के ताने और जज का रवैया

सुसाइड नोट और एक वीडियो में अतुल ने बताया कि जौनपुर परिवार अदालत में उनकी पत्नी और जज का व्यवहार उन्हें मानसिक रूप से तोड़ गया। एक सुनवाई के दौरान, जब अतुल ने जज रीता कौशिक को झूठे मामलों की बात बताई, तो जज ने इसे सामान्य बताते हुए हंसी उड़ाई। इस बीच, उनकी पत्नी ने कहा, "आप भी ऐसा क्यों नहीं करते?"—इसका संदर्भ आत्महत्या से था।  

धन की मांग और रिश्वत का आरोप

अतुल ने लिखा कि उनकी पत्नी ने शुरुआत में 1 करोड़ रुपये की मांग की, जिसे बाद में बढ़ाकर 3 करोड़ कर दिया गया। न्याय प्रक्रिया से टूटे हुए अतुल ने यह भी आरोप लगाया कि जज रीता कौशिक और उनके स्टाफ ने मामला निपटाने के लिए 5 लाख रुपये की रिश्वत मांगी थी।  

अंतिम इच्छाएं और भावनात्मक पीड़ा

अतुल ने अपने सुसाइड नोट में कुछ कठोर इच्छाएं व्यक्त कीं। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि उनकी पत्नी और उसके परिवार वालों को उनके शव के पास भी न आने दिया जाए। उन्होंने अपने बेटे की कस्टडी अपने माता-पिता को देने की अपील की, क्योंकि उनका मानना था कि उनकी पत्नी बेटे को अच्छे संस्कार नहीं दे सकती।  

उन्होंने यह भी लिखा कि उनकी अस्थियों का विसर्जन तब तक न किया जाए जब तक उनकी पत्नी और उसके परिवार को सजा न मिल जाए। अगर ऐसा न हो सके, तो उनकी अस्थियों को अदालत के बाहर गटर में बहा देने की बात कही।  

सिस्टम पर विश्वासघात का आरोप

अतुल ने उत्तर प्रदेश की अदालतों के मुकाबले कर्नाटक की अदालतों पर अधिक भरोसा जताया और मांग की कि आगे के सभी कानूनी मामले बेंगलुरु में चलाए जाएं।  

मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक चेतना का मामला

यह घटना सिर्फ एक पारिवारिक विवाद नहीं है, बल्कि न्याय प्रणाली में मौजूद खामियों और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति हमारी लापरवाही को उजागर करती है। अतुल सुभाष की यह दर्दनाक कहानी समाज के हर वर्ग को झकझोर कर रख देती है।  

सरकार और न्यायपालिका से अपील

अब देखना यह है कि इस मामले में न्यायपालिका और प्रशासन क्या कदम उठाते हैं। अतुल के आरोपों और उनकी अंतिम इच्छाओं के आधार पर आगे की जांच और कार्रवाई की मांग की जा रही है।  

यह मामला हमें याद दिलाता है कि समाज में न्याय, पारदर्शिता और मानसिक स्वास्थ्य पर गहराई से काम करने की आवश्यकता है। 

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